नियम
नमस्कार दोस्तों
आज मैं एक बहुत ही संवेदनशील विषय पर बात करने वाला हूँ।
मेरी कुछ बाते शायद आपको कड़वी लग सकती है, लेकिन मेरा आपसे अनुरोध है की कृपया मेरी बातों को जरा ठन्डे दिमाग से सोचिये।
तो चलिए आज का विषय आरंभ करते है।
आज का विषय है, नियम।
जी हाँ दोस्तों अपने सही सुना, नियम। जिसे आप चाहो तो कानून कहे लो।
तो चलिए आज के विषय पर मुड़ते है।
नियम क्या है? क्यों बनाये जाते है? क्या इंसान नियमों के बिना जी ही नहीं सकता?
हम देखते है की, प्रकृति में, हर एक जीव निसर्ग के बनाये नियमों का पालन करता है। भले इंसानों के मुताबिक वह सरे जंगली जानवर होते है, लेकिन वह भी जन्म से लेकर अंत तक उन नियमों का पालन करते है जो उन्हें उनके शिशु अवस्था में उनकी माँ या बाप द्वारा दिए जाते है। उनका दिमाग ज्यादा सोच नहीं सकता, शायद यही वजह है की उनमें बेवजह के आपसी झगड़े भी नहीं होते।
चलिए छोडिए इस बात को, इंसानों पर आते है।
हम भी उन्हीं नियमों का पालन करते है जो हमें अपने बचपन में सिखाये जाये है। माँ बाप द्वारा और स्कूल टीचर द्वारा। लेकिन अधिकतर हम जो बनते है उसके पीछे हमारे आप पास का वातावरण जिम्मेदार होता है। जो हम बचपन से देखते है, सुनते है, हम उसी का आचरण करते है। और हम भी उन्हीं में से एक बन जाते है।
आज हम देखते है, हमारे देश में, इतने कानून होने के बावजूद भी चीज़ें ज्यादातर बदलती नहीं। इसके पीछे क्या वजह है? मान लीजिये सरकार हेलमेट कम्पलसरी कराती है तो हम मजबूरी में हेलमेट पहनना शुरू करते है ताकि जुर्माने से बच सके। इसलिए नहीं पहनते की वह हमारी सुरक्षा करता है।
क्यों?
कभी सोचा है?
अरे सोचना क्या? हम बचपन से देखते आये है, हमारे माँ बाप, पडोसी, दोस्त हर कोई ज्यादातर बिना हेलमेट के गाड़ी चलता है, और आज तक तो किसी को कुछ हुआ भी नहीं।
तो भाई में भी बिना हेलमेट के जा ही सकता हूँ न?
यहाँ पर बात आती है, शिक्षा यानी के एजुकेशन की। हमें सिखाया तो जाता है की हेलमेट जरूरी होता है, लेकिन हमारे अपने ही कभी उसपर अमल नहीं करते। तो जाहिर सी बात है की, हम भी वही सीखेंगे।
यह तो बस एक छोटा सा उदाहरण था, ऐसी हजारों बाते है जिनको हम कभी अमल में नहीं लाते और उम्मीद करते है की कोई हमारे लिए इन सब बातों को ठीक करेगा?
भाई करेगा कौन?
तुम ही तो हो न? जो इसे ठीक करोगे?
आज हम कई सारे विडियो देखते है की जापान में और चाइना में और इनके जैसे कई देशों में लोगों में कितना अदब और तहेजिब होती है।
क्यों?
क्या उनकी सरकारे जबरदस्ती ऐसा करने के लिए कोई नियम बनती है?
जी नहीं।
बल्कि, यह सब बाते उन्हें अपने स्कूल से ही सिखाई जाती है, और घर में माँ बाप, बहार पड़ोसी और दोस्त सभी उसका पालन भी करते है क्यों की उनको भी उनके बचपन से ही यह सब सिखाया जाता है।
याद रखिये, बदलाव एक दिन में नहीं आता।
यह एक बहुत ही धीमी प्रक्रिया है, अगर हम चाहते की हमारे देश में भी बदलाव हो, तो सबसे पहले हमें बदलना होगा। सिर्फ चार बाते किताबों में छापने से, या नियमों की जबरदस्ती करके समाज में बदलाव नहीं होता। समाज बनता है लोगों से, और लोग बनाते है शिक्षा से और शिक्षा का मतलब है आचरण। अगर शिक्षा ही कमजोर होगी तो चाहे जितने नियम लगा दो, देश कभी प्रगति नहीं करता।
मेरे विचार से एजुकेशन ही देश की सब से बड़ी ताकत होती है। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में एजुकेशन का मतलब सिर्फ अच्छे नम्बरों से पास होना यही होता है।
मैं फिर से एक बार जापान और चाइना जैसी देशों का उदाहरण देना चाहूँगा, उनके स्कूलों में बचपन से ही बच्चो को आत्म निर्भर बनाया जाता है, बड़ो का आदर करना, अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में पहले सोचना, अपनी गन्दगी को खुद ही साफ़ करना इत्यादि उनके शिक्षा का ही एक अभिन्न भाग होता है।
मान लो यही अगर हम यहाँ किसी स्कूल में शुरू करते है तो, मीडिया वाले, बच्चो के पेरेंट्स हो हल्ला करेंगे की देखो इस स्कूल में बच्चो से काम करवाया जाता है? और शायद स्कूल पर ही करवाई होगी. यह कितना विरोध-भास है। अगर हम ही बच्चो की गलतियों को छिपाने लगेंगे तो उनको इसकी आदत लग जाएगी। अगर आप चाहते हो की हमारा देश भी उन गिने चुने देशों में शामिल हो जिनकी दुनिया तारीफ कराती है तो पहले खुद को बदले।
हमें समस्या की गहराई में जाकर उसका समाधान निकालने की जरूरत है, सिर्फ बाहरी समाधान से चीज़ें बदलेंगी नहीं, यही सब सालो साल तक चलता रहेगा। चाहे कितनी भी सरकारे आये और जाये।
आज हम देखते है की कोई भी देश में कोई बनाये नियमों का पालन नहीं करता, ज्यादातर लोगों को या तो शर्म अति है या तो अपने बड़े अहोदे का हवाला देकर नियमों के पालन से छूट जाते है।
यह कितनी शर्म की बात है।
हम बस खुद को ही अपने देश के वासी होने पर गौरवान्वित महसूस करते है। जरा बहार की दुनिया के लोगों की नजरिये से देखो तो पता चलेगा हम कहा खड़े है।
आज भी कई देशों के लोग हमारे देश को पिछड़ा हुवा मानते है, उनके लिए आज भी यहाँ कोई लड़की सुरक्षित नहीं है, अरे खुद की देश की लड़की सुरक्षित नहीं है तो दूसरे देश की लड़की के बारे में क्या कहना? लोग आपस में झगड़ते रेहते है, किसी को दूसरे की पड़ी नहीं है, न कोई संस्कार है न कोई नियमों का पला करता है, जो की सच भी है।
अब आप कहोगे की भाई हमें क्या लेना की कौन हमारे बारे में कौन क्या सोचता है।
लेकिन, यही तो शिक्षा होती है न? हम खुद तो कभी बदलेंगे नहीं, लेकिन दुनिया को देखकर अपने देश को गलिया जरूर देंगे।
याद रखिये आप के बच्चे और आने वाली नस्ल वही करेगी, वही सीखेगी जो आप करेंगे।
असली संस्कार स्कूल में नहीं बल्कि घर पर होते है।
कुछ बातों पर में आपका ध्यान केन्द्रित करना चाहूँगा।
ट्रैफिक नियमों का पालन करने की शुरु वात आप से ही करें। हेलमेट को मजबूरी नहीं बल्कि अपने परिवार की हिफाजत के लिए पहने।
सिर्फ ट्रैफिक इंस्पेक्टरों के सामने सिट बेल्ट न लगाये। कोई हो या न हो, गाड़ी में जैसे ही बैठो सिट बेल्ट लगाये। चाहे दिन हो या रात, चाहे सड़क खली ही क्यों न हो।
दूसरों पर अपने बच्चो के सामने अपने अहोदे का रुतबा कभी न जताए। जैसे की, में एक बहुत बड़ा आदमी हूँ; तो मेरा परिवार और मेरे बच्चो को खास सहुलते मिलनी चाहिए, ऐसी आदतों से आपके बच्चे खुदगर्ज कभी नहीं बनेंगे, वह हमेशा आपके सहारे पर ही चलेंगे।
बच्चो की लड़ाई में बड़े शामिल ना ही हो तो अच्छा है। वरना अकसर, बचे लड़ाई भूल कर कुछ देर बाद आपस में खेलने लगते है लेकिन उनके पेरेंट्स आपस में ही झगडा मोल लेते है.
हमेशा अपने से पहले दूसरों की सोचे, घर पर अपनो से बड़ो की इज्जत करें। बहार भी जरूरत मंदो के बारे में पहले सोचे।
अगर आपके पास कोई चीज़ पहले से ही है, फिर भी उसे लेने की चेष्टा न करें। दूसरों को भी उसका लाभ लेने दे।
देर रात तक बिना जरूरत के, बस दूसरो को दिखने के लिए, पटाखे फोड़ना, लाऊड स्पीकर पर गाने बजाना, ये कहा के संस्कार है?
रास्ते पर बिना रोकटोक मनमर्जी गाड़ी चलाना, अरे हमसे अच्छे तो चींटियाँ, पंछी और जंगली जानवर होते है जो बिना किसी तय रास्ते के भी एक सीध में चलते है, हम तो बनाये रास्तों पर भी ठीक से गाड़ी नहीं चला सकते और खुद को दूसरे जानवरों से ऊपर समझते है।
पता नहीं लोगों को इतनी कौन सी जल्दी होती है?
भाई इतनी जल्दी है तो थोड़ा जल्दी निकलो घर से।
और कहा जाने की जल्दी होती है? मुझे तो आज तक नहीं समझ आया। लेकिन बस उन्हें दूसरों से आगे निकलना है।
इतनी जल्द बाजी हम अपने कामों में तो कभी दिखाते नहीं?
अरे हो जायेगा? कहा जायेगा? इतनी जल्दी क्या है? हम कहा भागे थोडे ही जा रहे है?
ऐसे बनोगे भारत को महान?
और न जाने ऐसे कितने ही बाते है जो हम रोज मर्रा की जीवन में करते है।
हालाँकि वह हमसे बस अपने आप ही हो जाती है, क्यों की बचपन से हम वही देखते आ रहे है, हमारे घर पर, बहार, दोस्तों से और अब हमें भी वैसे ही जीने की आदत लग चुकी है।
हमारी छोटी सी छोटी बातों से भी हमारे संस्कारों के बारे में पता चलता है।
सौ बातों की एक बात, भाई उपरी मरहम लगाकर कुछ नहीं होनेवाला, हमें जरूरत है अपने अन्दर से खुद को बदलने की। ये जो बीमारी लग चुकी है इसे जड़ से निकालने की, हालाँकि यह एक दिन में नहीं होगा, लेकिन एक न दिन होगा जरूर।
ताकि एक दिन ऐसा भी आये की दूसरे देशों के लोग हमसे आदर्श ले, हमसे सीखे।
दोस्तों, बाते तो कई है,
लेकिन हमें एक और आदत यह भी है की हमें पता तो सब होता है लेकिन हम करते कुछ नहीं।
तो चलिए खुद को बदलने की कोशिश करते है। हम सब मिलकर भारत को एक नयी पहचान देते है. हाँ, शुरुआत में थोड़ी मुश्किल जरूर होगी अपनी आदतों को बदलने में, लेकिन अगर ठान लो तो अपने ही जीवन काल में हम एक नए भारत को बना सकते है।
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